ब्रज रसिक संकीर्तन व वाणी

ब्रज रसिक संकीर्तन व वाणी

रसिकों द्वारा लिखी गई वाणी वृंदावन एवं ब्रजरस का मूल स्रोत है। जिसको भी इस रस में आगे बढ़ना है उसे इन वाणियों का आश्रय लेना होगा एवं रसिकों द्वारा बताए गए मार्ग में चलना होगा।
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ब्रज-वासी-पटतर कोऊ नाहीं - श्री सूरदास, सूर सागर

ब्रज-वासी-पटतर कोऊ नाहीं - श्री सूरदास, सूर सागर

ब्रजवासियों की बराबरी कोई नहीं कर सकता। जिन श्रीकृष्ण को ब्रह्मा, शिव, सनकादि आदि भी ध्यान में नहीं पा सकते, वही श्रीकृष्ण प्रेमवश ब्रजवासियों की जूठी थाली से अन्न ग्रहण करते हैं।

21 hours ago
हेस्वामिनि श्रीकुंजविहारिनि - श्री ललित किशोरी, अभिलाष माधुरी, विनय (122)

हेस्वामिनि श्रीकुंजविहारिनि - श्री ललित किशोरी, अभिलाष माधुरी, विनय (122)

हे स्वामिनी, श्री कुंज विहारिणी (श्री राधा)! कृपा करके शीघ्र मेरी सुध लें। मुझे सेवा की रीति कुछ भी नहीं आती, मेरी भूल को क्षमा कर दें।

छंद: 122
2 days ago