(राग झिंझोटी)
प्यारे प्रेम भूमि श्री वृंदावन ॥
यहां के जड़ चेतन सब प्रेमी इनके भाव भरे रस मय तन ।
साधन साध्य यहां नहीं कोई केवल कृपापत्र सबही जन ॥ [1]
प्रेम प्रवाह रसिक जन प्यारे सरवस तिनके विपन परम धन ।
अलीमाधुरी अति सुखसागर श्रीमुख महिमा कहत मगन मन ॥ [2]
- श्री अली माधुरी जी, श्री निकुंज केलि माधुरी, श्री प्यारी जी की गेंद लीला (23)
अरे प्यारे, वृंदावन की भूमि प्रेम से ओतप्रोत है । यहाँ के जड़ और चेतन सभी प्रेमी जन ही हैं जो श्यामा श्याम के भाव रस में भरे हुए हैं । यहाँ न तो कोई साधक है न सिद्ध है, यहाँ सब ही कृपापात्र जन हैं । [1]
यहाँ के रसिक जन प्रेम के प्रवाह में गोते खाते हैं जिनका सर्वस्व परम धन श्री धाम वृंदावन ही है । श्री अली माधुरी जी कहते हैं कि रसिक जन एवं प्रिया प्रियतम भी जिस वृंदावन के गुणों को गाते हैं, जो अति सुख का सागर है, एवं जिसकी महिमा कहते हुए मन नाच उठता है । [2]